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Independence Day 2023: आजादी की लड़ाई में ये महिलाएं बनी थीं पूरे समाज के लिए प्रेरणा

Freedom Fighters Women : देश की ऐसी कई महिलाएं रहीं जिन्होंने आजाद भारत का सपना लेकर आंदोलन की आग में कूदना सही समझा और इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन महिलाओं ने सभी बेडियों को तोड़ते हुए पुरुषों के कंधों से कंधा मिलाया था।
 

Independence Day 2023 : 15 अगस्त ​को भारत आजादी के 76 साल पूरे करने जा रहा है। ऐसे में हर ओर जश्न का माहौल है। भारत ने खून-पसीना एक कर ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया और देश को गुलामी से आजाद कराया। आजादी की इस लड़ाई में सबसे पहले महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल को याद किया जाता है। लेकिन यह लड़ाई महिलाओं के बिना अधूरी थी। ऐसी कई महिलाएं रहीं जिन्होंने आजाद भारत का सपना लेकर आंदोलन की आग में कूदना सही समझा और इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहां आंदोलन में भाग लेना मतलब समाज में बरसों से चली आ रही कई प्रथाओं को तोड़ने के समान था। वहां इन महिलाओं ने सभी बेडियों को तोड़ते हुए पुरुषों के कंधों से कंधा मिलाया था। आज देश की आजादी में सहयोग देने वाली उन महिलाओं के बारे में जानते हैं जो सबके लिए प्रेरणा बनीं।  

सरोजिनी नायडू 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं सरोजिनी नायडू कभी कोकिला नाम से जानी जाती थीं। उन्होंने महिलाओं के हक के लिए कदम उठाया जिसके बाद इस लड़ाई को लड़ना आसान होता चला गया था। सरोजिनी नायडू ने समाज की कुरीतियों के खिलाफ महिलाओं को जागरूक बनाया था। साथ ही आजादी और राजनीति में भी भागीदारी की। 

भीकाजी कामा 

भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी भीकाजी कामा ने स्वतंत्र भारत के लिए कई योगदान दिए। वह पहली महिला थीं जिन्होंने विदेश में भारत का झंडा फहराया था। 33 वर्ष बीमारी के चलते वह भारत से दूर रहीं। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और आजादी को लेकर उनका सपना कायम रहा।

सावित्री बाई फुले 

देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले को कौन नहीं जानता। समाज में महिलाओं के लिए शिक्षा की ज्योति जलाकर उन्होंने न सिर्फ महिलाओं को जागरुक किया ब​ल्कि भारतीय स्त्री आंदोलन की यात्रा में अहम भूमिका निभाई। साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना सावित्री बाई फुले ने ने ही की थी।

उषा मेहता  

बेहद कम उम्र में आजादी की लड़ाई लड़ने वाली महिला उषा मेहता थीं।  आजादी की लड़ाई में सबसे कम उम्र की प्रतिभागियों में से एक थी। उस दौरान इनकी आयु महज 8 साल की थी। उषा मेहता ने साइमन गो बैक विरोध में भी भाग लिया। यही नहीं उन्होंने पढ़ाई छोड़ने के बाद खुद को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया था।