Independence Day 2023: आजादी से पहले ये राज्य नहीं थे भारत का हिस्सा, जानें कैसे हुआ विलय

Independence Day 2023:भारत का नक्शा जैसा अभी दिखता है आजादी के समय यह ऐसा बिल्कुल नहीं दिखता था। कुछ ऐसे राज्य भी थे जिन्होंने खुद को भारत में शामिल होने से पीछे हटा लिया था। लेकिन बाद में आजादी के साथ ही नई रियासतों का विलय हुआ।
 
Independence Day 2023

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था। इस साल देश अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा, जो स्वतंत्रता के 76 वर्ष पूरे करेगा। बात करें अगर आजादी के समय की तो आज से ठीक 76 साल पहले आजादी के जश्न में जब हर कोई मग्न था तो कुछ ऐसे राज्य भी थे जिन्होंने खुद को भारत में शामिल होने से पीछे हटा लिया था। आपको बता दें कि भारत का नक्शा जैसा अभी दिखता है आजादी के समय यह ऐसा बिल्कुल नहीं दिखता था। लेकिन आजादी के साथ नई रियासतों का विलय हुआ। 

ये राज्य नवगठित भारत में नहीं थे शामिल

दरअसल, आजादी के समय में भारत कई रियासतों में बंटा हुआ था। जब 1947 में भारत ने काफी संघर्ष के बाद ब्रिटिश सरकार से आजादी हासिल की तब कई राज्य थे जो नवगठित भारतीय गणराज्य में शामिल नहीं थे। ये राज्य या तो रियासती शासकों के नियंत्रण में थे या ब्रिटिश के भारत से जाने के बाद उनके पास अपना भाग्य स्वयं चुनने का विकल्प था। आज हम आपको उन्हीं राज्यों के बारे में बताएंगे, जिन्हें आजादी के बाद ही भारत में सम्मिलित किया गया था। 

500 से ज्यादा रियासतों में बंटा था भारत

बता दें कि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान का बंटवारा किया गया। इस दौरान देशी रियासतों के पास तीन वि​कल्प थे, भारत में शामिल होना, पाकिस्तान के साथ शामिल होना या​ फिर स्वतंत्र रहने का। ये रियासतें मणिपुर, हैदराबाद, जूनागढ, त्रावणकोर और जम्मू-कश्मीर। चूकि आजादी के दौरान भारत 500 से ज्यादा रियासतों में देश बंटा था। उस दौरान हैदराबाद, जूनागढ और कश्मीर को छोड़कर बाकी रियासत स्वेच्छा से भारत में शामिल हो गई थीं। 

Independence Day 2023
Image credits: Wikipedia

हैदराबाद पर किया गया बलपूर्वक कब्जा 

सबसे पहले बात करते हैं हैदराबाद राज्य की जिसपर निज़ाम का शासन था। निज़ाम भारत या पाकिस्तान में शामिल न होकर स्वतंत्र रहना चाहता था। हालांकि भारत सरकार की ओर से निज़ाम को शामिल होने का आग्रह किया गया लेकिन उसके मना करने और असफल वार्ता के कारण भारत सरकार ने 1948 में "ऑपरेशन पोलो" नामक एक सैन्य अभियान शुरू किया और हैदराबाद पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया।

त्रावणकोर रियासत ने भी किया था इनकार

दक्षिण भारतीय समुद्री तट पर स्थित त्रावणकोर ऐसा पहला राज्य था जिसने आजादी के बाद भारत में शामिल होने से मना कर दिया था। साथ ही कांग्रेस सरकार के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। हालांकि यह राज्य सीधे तौर पर सोने-चांदी और मुद्रा के अलावा इस अमीर रियासत के पास समुद्री व्यापार की चमक और बेशकीमती 'मोनाज़ाइट' का भंडार था। जिसे हर कोई अपना बनाना चाहता था।

इस कारण मणिपुर बना भारत का हिस्सा

इन दिनों मणिपुर की हिंसा हर ओर चर्चा की विषय बनी हुई ​है। आपको बता दें कि आजादी के समय ये राज्य भी भारत का हिस्सा नहीं बनना चाहता था। यह एक स्वतंत्र रियासत थी। लेकिन विभिन्न आंतरिक चुनौतियों का सामना करने के बाद मणिपुर के महाराजा ने 1949 में राज्य को भारत में विलय करने का फैसला किया। जिसके बाद मणिपुर भी भारत का हिस्सा बन गया। 

पाक में शामिल होना चाहता था जूनागढ़

गुजरात में स्थित जूनागढ़ के नवाब एक मुस्लिम थे। आजादी के बाद उन्होंने बहुसंख्यक आबादी हिंदू होने के बावजूद पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया। जिसके बाद उनके फैसले का काफी विरोध हुआ। विपक्षी आंदोलन किए गए। तब जाकर  भारत सरकार ने फरवरी 1948 में जनमत संग्रह का आयोजन किया। इसके बाद जूनागढ़ के लोगों ने भारत में विलय होने का निर्णय लिया। 

जम्मू-कश्मीर ने भारत से मांगी थी मदद 

जम्मू और कश्मीर सबसे उल्लेखनीय उदाहरणों में से एक है। इस रियासत पर महाराजा हरि सिंह का शासन था। आजादी के समय महाराजा हरि सिंह अपने राज्य के भविष्य को लेकर अनिश्चित थे। हालांकि, 1947 में जब पाकिस्तान के आदिवासी लड़ाकों ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो उन्होंने भारत से सहायता मांगी। विलय पत्र पर हस्ताक्षर के परिणामस्वरूप जम्मू और कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया गया। हालांकि, पाकिस्तान समर्थित बलों के आक्रमण के बाद अंततः यह भारत में शामिल हो गया और आज तक एक विवादित क्षेत्र बना हुआ है।

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