मज़रुह सुल्तानपुरी के 10 चुनिंदा शेर

Majrooh Sultanpuri Shayari in Hindi: 'ऐसे हंस-हंस के न देखा करो...'

"ऐसे हंस-हंस के न देखा करो सब की जानिब, लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं।"

"ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना, थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें।"

"बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए, हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते।"

"तिरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गए, निकल के हम तिरी महफ़िल से राह भूल गए।"

"कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा, हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा।"

"अब सोचते है लाएंगे तुझ सा कहां से हम, उठने को उठ तो आए तिरे आस्तां से हम।"

"रोक सकता हमें ज़िन्‍दाने बला क्‍या ‘मजरूह', हम तो आवाज़ है दीवारों से छन जाते हैं।"

"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग आते गए और कारवां बनता गया।"

"वफ़ा के नाम पे तुम क्यूँ संभल के बैठ गए, तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की।"

"बढ़ाई मय जो मोहब्बत से आज साक़ी ने, ये काँपे हाथ कि साग़र भी हम उठा न सके।"